जैन समाज की घटती हुयी आबादी ....

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  • जैन धर्म के अनुयायीयों की घटती हुयी आबादी एक चिंता का विषय है.

  • आबादी का नियम यह है कि जिस समाज में संपन्नता और जिस समाज में शिक्षा का प्रमाण जादा हो उस समाज की आबादी बढती नहीं बल्कि घटती रहती है. इसके कई उदाहरण है. जैसे कि यूरोप के गोरे लोगों कि आबादी घटती जा रही है. उसी प्रकार यहूदी समाज की जनसंख्या में भी गिरावट आ रही है. भारत का पारसी समाज भी इसका एक बड़ा उदाहरण है. 1951 की जनगणना के अनुसार उनकी संख्या लगभग 1 लाख 12 हजार थी और 2011 की जनगणना के अनुसार वह 57 हजार के आसपास पहुंच गयी.

    चूं कि यूरोपीय गोरे, यहूदी और पारसी समाज में संपन्नता है, उनकी आबादी बढ़ने का सवाल ही नहीं उठता. उलटे नजदीकी भविष्य में उनकी आबादी और घट जायेगी. उसी समय जिन समाजों में सुबत्ता नहीं है, ऐसे अशिक्षित, कम पढ़े-लिखे और गरीब तबके के लोगों की आबादी बढ़ती रहेगी. इससे सुबत्ता वाले समाजों का कुल आबादी में परसेंटेज भी घट जाएगा.

    जो बात यूरोपीय गोरे, यहूदी और पारसी समाज की है, वही बात जैन समाज पर भी लागू होती है. चूं कि जैन समाज में संपन्नता और शिक्षा दोनों हैं, इस बात का सवाल ही नहीं उठता की अधिक बच्चों को जन्म दे कर जैन समाज की आबादी बढे.

    लेकिन जैन समाज की आबादी बढाने के कुछ अलग तरीके भी है. उन पर समाज को गौर करना चाहिए.

    पहला तरीका यह है कि अजैन समाज के जिन लोगों को जैन धर्म में रूचि है, उनको जैन बनाया जाये. वास्तवता तो यह है कि भारत के लाखों अजैन लोग जैन धर्म को अपनाना चाहते है, लेकिन जैन समाज और जैन मुनिगण इस बात पर ध्यान नहीं दे रहें हैं.

    इस बात पर भी गौर करना चाहिए कि भारत में ऐसे अनेक समाज हैं जो प्राचीन काल में और मध्य युग तक जैन थे, लेकिन कई कारणों से उन्हें जैन धर्म छोडना पडा. लेकिन धर्म परिवर्तन के बाद भी उन्होंने शाकाहार और अपनी अहिंसक जीवन शैली को नहीं छोडा. ऐसी अवस्था में हमारा कर्तव्य बनता है कि हमारे इन बिछडे बंधुओं को फिर से अपनाया जाये.

    दूसरा तरीका यह है कि हर संपन्न जैन परिवार को किसी एक अनाथ बच्चे या बच्ची को गोद लेना चाहिए, और उसे जैन धर्म के संस्कार देने चाहिए.

    अगर कोई अजैन व्यक्ति जैन साधू बनाना चाहता है तो हम उसका स्वीकार करते हैं. उसी प्रकार अगर कोई अजैन व्यक्ति जैन श्रावक बनना चाहता है, तो हमें उसे भी स्वीकार करना चाहिए.

    एक आसान तरीका यह है कि जैन मंदिरों के दरवाजे सबके लिए खोले जाये. देखा जाता है जादा तर जैन मंदिरों में केवल जैन श्रावक ही जाते रहते है. जैन मंदिरों को सबके लिए खुला करने पर अन्य लोग भी जैन मंदिर जाया करेंगे और उनकी जैन धर्म में रूचि बढ़ेगी.

    इन तरीकों को अपनाने पर जैन आबादी बढ़ने में जादा देर नहीं लगेगी. आशा है इन सुझाओं पर हमारे पूज्य मुनि और जैन समाज के नेता गंभीरता से विचार करेंगे.

    याद रहें कि पारसी और यहूदी यह दोनों समाज अपना धर्म बढाने का प्रयास नहीं करते और ना ही उनके प्रार्थना स्थल सबके लिए खुले है. उनकी घटती आबादी के पीछे यह भी बड़े कारण है. हमें ऐसी गलतियां नहीं करनी चाहिए.

    -महावीर सांगलीकर